गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

पाश्चात्य संस्कृति में गुम हो गई पालकी की परंपरा

बीते जमाने कि बात है जब कोई शादी करने जाता था तो उसे पालकी में बैठाकर ले जाया जाता था और शादी करके दुल्हन को भी उसी पालकी में दुल्हे के साथ बैठाकर लाया जाता था और पालकी को उठाने के लिये कहार भी होते थे। परन्तु आधुनिकता के इस दौर में पालकी का रिवाज समाप्त हो गया है। अब इसकी जगह मोटर कार ने ले ली है। कहते हैं कि पालकी के लिये कहार जाति के लोग हुआ करते थे जो पालकी भाड़ा पर लगाते थे और लगन के समय में इनकी खूब कमाई होती थी। इतना ही नहीं पालकी भी कई प्रकार के होते थे कुछ सामान्य दर्जे के होते थे तो कुछ अव्वल दर्जे के। शादी के अवसर पर जैसी पालकी की मांग कि जाती थी कहार वैसा मुहैया कराते थे। कुछ संपन्न घराने के लोग अपनी पालकी भी रखते थे जिसे ले जाने के लिये कहार को ही बुलाया जाता था। परन्तु आजकल पालकी सिर्फ फिल्म में ही देखे जाते हैं। पालकी कि परंपरा समाप्त होने से कहार जाति के लोग भी बेरोजगार हो गये है और रोजगार कि तलाश में अन्यत्र पलायन कर रहे हैं। पालकी के व्यवसाय से ही उसके परिवार का भरण-पोषण होता था। कहार जाति के वयोवृद्ध उमेश सिंह बताते है कि पालकी का निर्माण आकर्षक साज-सज्जा के साथ किया जाता था। पालकी उठाने के लिये दोनों तरफ मोटा बांस होता था और चकोर आकार की पालकी बनी होती थी जिसमें एक दरवाजा होता था। पालकी ले जाने के क्रम में जब कहार थक जाते थे तो पालकी को डंडे पर खड़ा किया जाता था उसे नीचे रखने की परंपरा नहीं थी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.