रविवार, 6 फ़रवरी 2011

..अरे देखो, लगता है वसंत आ गया

राजेश कानोडिया, नवगछिया
वसंत का मौसम आते ही हर चीजों में नई तरूणाई और जोश आ जाता है। हर मुरझाई चीज फिर से खिल उठती है। यहां तक कि सूखे पेड़ भी फिर से हरे होने लगते हैं।मानव से लेकार पशु पक्षी एवं पेड़ पौधे तथा खेतों तक में हरियाली छा जाती है । प्रकृति के इस सौंदर्य नजारे को नजदीक से निहारने का मन करने लगता है। वसंत में जब फूलों पर बहार आते है और खेतों में सरसों का फूल सोना जैसे चमकने लगता है। वहीं, जौ व गेहूं की बालियां खिलने लगती है, आमों के पेड़ पर बौर या मंजर आने लगते हें। चारो ओर मंजर की खुशबू फैलने लगती है। फूलों पर भवरें व तितलियां मंडराने लगती हैं तो हर किसी के मुंह से निकलने लगता है-अरे देखो लगता है वसंत गया
वसंत एक ऋतु अथवा मौसम का नाम है। जो भारत की छह ऋतुओं में से एक है। जिसे लोग मनभावन मौसम भी कहते हैं। इस मौसम में मानव तो क्या पशु-पक्षी भी उल्लास भरने लगते हैं। यों तो माघ का पूरा मास ही उत्साह और उल्लास देने वाला होता है। माघ महीना आते ही माघी की पीली -पीली चुनरिया खेतों में दूर से ही लहलहाती नजर आने लग जाती है।
दर असल माघी का मतलब है माघ महीने में होने वाली विशेष फसल से। जिसका उपयोग किसान व मवेशी के साथ आम लोग सालों भर करते हैं। किसानों द्वारा रैंचा व सरसों की बुआई कार्तिक मास के बाद, छठ पर्व के आस पास की जाती है। जिसकी उपज प्रकृति पर निर्भर करती है। जगतपुर के अरविन्द यादव , विनोद यादव, साहू परवत्ता के राम कुमार साहू सहित कई किसान बताते हैं कि इस माघी फसल का उपज12 से 15 मन प्रति बीघा होती है। कभी-कभी 20 मन प्रति बीघा भी हो जाती है। जिसका उपयोग हम शुद्ध सरसों के रूप में सालभर करते हैं। वहीं, सरसों की खल्ली का उपयोग हम मवेशियों के भोजन के रूप करते हैं। ढाई से तीन किलो सरसों में एक किलो तेल निकल जाता है। बांकी खल्ली बच जाती है। गेहूं, चावल मक्का व अन्य सामान देखकर खरीद सकते हैं लेकिन तेल नहीं। जब से होश संभाला है अपनी माघी पर ही भरोसा छाया है। अपनी माघी का कोई जवाब नहीं।

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