रविवार, 6 फ़रवरी 2011

जरूरतों पर चली कटौती की कैंची

रूप कुमार, भागलपुर
डायन बनी महंगाई विकराल रूप लेती जा रही है। हर तबका इससे परेशान है। गरीबों को तो दाल-रोटी के लिए भी प्रतिदिन जूझना पड़ रहा है। ऐसे में लोगों ने अपनी जरूरतों पर कटौती की कैंची चलाना सीख लिया है। सेहत से समझौता करना उनकी मजबूरी बन गई है। सबसे खस्ता हाल तो मध्यमवर्गीय परिवारों का है, जो परिवार का बोझ उठाते-उठाते कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं। निम्न मध्यमवर्गीय सरकारी सेवक प्रणीत कुमार मिश्रा की मासिक आय 11 हजार रुपए है। एक साल पहले तक वे इस पैसे में खुशी-खुशी छह सदस्यों वाले अपने परिवार का खर्च चलाते थे तथा दो से तीन हजार रुपए की बचत भी कर लेते थे। लेकिन पिछले एक साल में उनकी हालत पतली हो गई है। कर्ज लेकर परिवार चलाने की नौबत आ गई है। हरी सब्जी की जगह आलू और दूध वाली चाय की जगह नींबू चाय से ही दिनचर्या शुरू करनी पड़ रही है। नॉनवेज को तो बाय-बाय कर चुके हैं। वहीं, उच्च मध्यमवर्गीय शिक्षिका छाया पांडे की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है। उनका मासिक वेतन 35 हजार है। महंगाई ने उनका बजट बिगाड़ दिया है। क्योंकि अब मासिक खर्च डेढ़ गुना अधिक हो गया है। पहले वे 10 हजार बचा लेती थीं अब 5 हजार भी नहीं बचते। क्योंकि रोजमर्रा की वस्तुएं एवं खाद्यान्न 25 फीसदी महंगे हो गए हैं।

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