सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

रूठी बौर, आम का नहीं ठौर

रूप कुमार, भागलपुर।
बसंत ऋतु का आगमन हो चुका है। लेकिन अब तक आम की डालियां मंजरों से नहीं लदीं। हालांकि छिटपुट पेड़ों पर मंजर दिखाई दे रहे हैं। यह स्थिति जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुई है। दरअसल कड़ाके की ठंड ने मंजर के फलन की प्रक्रिया बाधित कर दी। आम तौर पर फरवरी के प्रथम सप्ताह में आम के पेड़ों पर मंजर दिखने लगता था। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर 30 दिनों के अंदर मंजर नहीं आया तो इस वर्ष आम सुलभ व सस्ता नहीं होगा। इस बार महज 20 फीसदी पेड़ों में ही मंजर आने की संभावना है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के उद्यान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. यूएस जायसवाल ने बताया कि अक्टूबर से ही मंजर निकलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसके लिए 16 से 20 डिग्री तापमान कम से कम दो सौ घंटे चाहिए। लेकिन फरवरी को छोड़ इस बार इतना तापमान कभी नहीं पहुंचा है। नतीजतन पहले अधिक ठंड व बाद के दिनों में ठंड नहीं रहने से मंजर का फलन नहीं हुआ। इसके अलावा बारिश न होने के कारण जमीन में प्रर्याप्त नमी नहीं है। उद्यान वैज्ञानिक प्रो. डीपी. साहा ने बताया कि भागलपुर व आसपास के क्षेत्रों में मालदह, बंबइया, फजली, गुलाबखस व अन्य किस्म के पाए जाने वाले आम अन्तरवर्षीय हैं। बागों का सही प्रबंधन न होने से अन्तरवर्षीय फलन की स्थिति पैदा हो रही है।

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