रूप कुमार, भागलपुर।
सोने का अंडा देने वाली मुर्गी अब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की तकदीर बदलेगी। गरीबी का फायदा उठाकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भोले-भाले गरीब मजदूरों को अपने संगठन से जोड़ने की नक्सली चतुराई अब नहीं चलेगी। इन इलाकों में लाल आतंक के खिलाफ अब मुर्गा देगा बांग। दरअसल, बिहार कृषि विश्र्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मेवालाल चौधरी ने एक विशेष परियोजना बनाई है, जिसे शनिवार को हरी झंडी मिल गई है। इस परियोजना को बिहार के नक्सल प्रभावित हर जिलों में लागू करने की योजना है लेकिन प्रयोग के तौर पर इसे मुंगेर जिले से शुरू किया जा रहा है। परियोजना के अनुसार बीएयू नक्सल प्रभावित गांव के हर गरीब मजदूर परिवारों को 25 से 40 मुर्गी का चूजा देगी । इनमें से ग्राम प्रिया नामक मुर्गी का चूजा बिना मुर्गे के भी अंडा देगी। जबकि मीट के लिए एक परिवार को वनराजा नामक चूजा दिया जाएगा। ग्राम प्रिया को मजदूर देसी मुर्गी की तरह खुले में पाल सकते हैं। बीएयू बैकयार्ड पॉलिसी के तहत मुर्गे व मुर्गी के चूजों को देगी। देशी मुर्गी साल में 45 या 60 अंडा देती है, जबकि ग्राम प्रिया मुर्गी साल में 160 से 180 अंडे देती है। बीएयू प्रत्येक परिवार को 40 मुर्गी देगी। इससे साल में एक परिवार को 4 हजार अंडा होगा। इससे गरीब परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार के साथ- साथ परिवार को रोजगार भी मिलेगा। बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय पटना में फिलहाल 6 हजार मुर्गी के बच्चे हैं। इनमें से 3 हजार पैरेटैंस स्टॉक है, जिससे इस परियोजना के लिए 2500 और चूजों को हैचरी के जरिए तैयार किया जा रहा है। पटना पशु चिकित्सा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मणिकांत चौधरी ने बताया कि प्रत्येक परिवार को 6 से 8 सप्ताह का चूजा दिया जाएगा। चूजों को देने के पहले इस परियोजना से जुड़ने वाले हर व्यक्ति को मुर्गी पालन का प्रशिक्षण स्थानीय स्तर पर दिया जाएगा। प्राचार्य ने बताया कि नक्सली गरीबी का फायदा उठाकर गरीब व भोले-भाले लोगों को अपने प्रभाव में लाकर उनके जीवन में अंधेरा कर रहे हैं। लेकिन इस परियोजना से उनके जीवन में नई रोशनी आएगी। इधर, कुलपति ने इस संबंध में वहां के डीएम व पुलिस अधीक्षक से भी बात की है। डीएम व एसपी ने भी बीएयू की इस योजना को गले लगाते हुए मिशन में काफी रूचि ली है। परियोजना की कमान बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय पटना के प्राचार्य डॉ. मणिकांत चौधरी को सौंपी गई है।
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