गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

एमपी के युवाओं ने कहा दिलेर हैं बिहार के लोग

अमरेन्द्र कुमार तिवारी

सबौर (भागलपुर), प्रतिनिधि । 'युवा क्लब विनिमय कार्यक्रम' के तहत सभ्यता एवं संस्कृति का आदान प्रदान करने के लिए मध्य प्रदेश की बीस युवा-युवतियां अंग जनपद की धरती पर खानकित्ता गांव पहुंचे हैं। अभी यहां पहुंचे उन्हें महज दो दिन हुआ है, लेकिन लोगों को खानकित्ता गांव अपना घर आंगन जैसा लगने लगा है।

मध्य प्रदेश के इंदौर जिला स्थित हिचौली मर्दाना गांव से आए युवा आनंद सोलंकी ने एक सवाल के जबाव में कहा- 'जब यहां आने के लिए तेजस्वनी महिला मंडल क्लब, अखरावत खुर्द' से इंदौर नेहरू युवा क्लब द्वारा चयन किया गया तो इसकी सूचना मैंने अपने माता-पिता को दिया। उन्होंने बिहार दौरे का नाम सुनते ही पहले मना कर दिया। काफी समझाने-बुझाने पर जब राजी हुई तो कहा-'बेटा बिहार जा रहे हो थोड़ा संभल कर रहना'। दूसरे युवा जितेन्द्र ठाकुर ने कहा घर वालों को जो यहां के बारे में घबराहट थी, वह यहां पहुंचते ही दूर हो गई। तीसरे युवा पूनम चौधरी ने कहा हमें मां ने यहां आने के पूर्व प्रोत्साहित किया था। कहा था बेटा अपना प्यार व व्यवहार बांट के आना। दो दिनों में ही शिविर के सुखद माहौल में घुलमिल गए युवा अर्जुन चौहान व नीतिन कुशवाहा ने जोरदार शब्दों में कहा कि सिर्फ मीडिया के लोग बिहार को बदनाम करते हैं। यहां के लोग दिलेर है। यहां की विधि व्यवस्था भी काबिले तारिफ है।

युवाओं ने सीखा क्लबों का उदेश्य एवं कार्य

सबौर : शिविर में दूसरे दिन गुरुवार को युवा क्लब विनिमय कार्यक्रम के तहत युवा-युवतियों को क्लबों उदेश्य एवं कार्य की विस्तार से जानकारी दी गई। यहां कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेदारी नेहरू युवा क्लब भागलपुर ने अपनी संबंद्ध संस्था पटेल जन कल्याण विकास केन्द्र, खानकित्ता को दिया है।

कार्यक्रम के दूसरे दिन केन्द्र के सचिव संजय कुमार सिंह ने शिविर में युवा-युवतियां को युवा क्लबों के कार्य एवं उदेश्य की विस्तार से जानकारी दी। मौके पर उपस्थित बैजलपुर के पंचायत समिति सदस्य शैलेन्द्र मंडल ने भी युवाओं को सामाजिक सेवाओं के बारे में बताया। जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता उप प्रमुख संजीत कुमार सिंह कर रहे थे।

मनोरंजन के साधनों में बदलाव की उम्मीद

अशोक अनंत, भागलपुर : शहर में मनोरंजन के साधनों में एक महत्वपूर्ण साधन सिनेमा हॉल है। लेकिन उनकी स्थिति भी अब डांवाडोल हो चुकी है। पांच सिनेमा हॉल में अब मात्र दो ही बचे हैं। वहीं, खेलकूद के लिए मात्र तीन स्थान हैं। जहां सैंडिस कंपाउंड के एक हिस्से में स्टेडियम है, वहीं टॉउन हॉल और सैंडिस कंपाउंड के एक हिस्से में इनडोर गेम होता है।

2011 में स्टेडियम के सौन्दर्यीकरण की व्यवस्था के अलावा अब नई टेक्नोलॉजी से केबुल नेटवर्क का संचालन और सेटेलाइट से फिल्म डाउन लोड कर दिखाने की योजना है। हालांकि लाजपत पार्क में वर्ष में एक बार डिजनीलैंड या सर्कस लगाए जाते हैं।

अब प्रोजेक्टर के बदले नई टेक्नालॉजी से दिखाई जाएगी फिल्म

स्थानीय दीपप्रभा सिनेमा हॉल के व्यवस्थापक प्रमेन्द्र मोहन ठाकुर ने बताया कि अब प्रोजेक्टर से फिल्म दिखाने के दिन लद गए हैं। इस हॉल में अब नई टेक्नालॉजी से फिल्म दिखाई जाएगी। फिल्म का प्रिंट पहले की तुलना में तीन गुणा ज्यादा साफ रहेगा। नई टेक्नोलॉजी से फिल्म का डाउन लोडिंग सीधे सेटेलाइट से किया जाएगा। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि अब सिनेमा हॉल में दर्शकों की संख्या में कमी आती जा रही है। बिजली की बाधित आपूर्ति की वजह से भी हॉल को वातानुकूलित रखना असंभव सा होने लगा है। आबादी तो बढ़ी है लेकिन इसकी तुलना में आमदनी नहीं बढ़ी। वैसे भी शहर में पांच सिनेमा हॉल के स्थान पर मात्र दो ही कार्य कर रे हैं जिसमें दीप प्रभा और अजंता टॉकिज शामिल हैं।

केबुल नेटवर्क भी होगा आधुनिक

शहर का केबुल नेटवर्क भी अब आधुनिक होगा। अभी केबुल पर 95 चैनल दिखाए जा रहे है लेकिन नए वर्ष में 150 चैनल दिखाए जाने की उम्मीद है। केबुल मास्टर कंट्रोल रूम के व्यवस्थापक कन्हैया के मुताबिक केबुल नेटवर्क को भी नई तकनीक के सहारे चलाया जाएगा। उन्होंने बताया कि रिलायंस के अलावा अन्य कई ऐसी कंपनियां हैं जो केबुल नेटवर्क में अपना जलवा दिखाने के लिए आतुर हैं। नई टेक्नालॉजी से तश्वीर तो साफ होगी ही साथ-साथ 95 के बदले 150 चैनल भी दिखाए जाएंगे।

खेलकूद के लिए साधन का अभाव

शहर में खेलकूद के लिए साधन का अभाव है। शहर में इनडोर गेम के लिए दो हॉल है। जिनमें एक हॉल सैंडिस कंपाउंड के उत्तरी हिस्से में स्थित है। वालीवॉल कोच नील कमल राय ने बताया कि सैंडिस कंपाउंड में वालीवॉल के लिए दो कोर्ट बने हुए हैं। कोर्ट में गैलरी का निर्माण किया जा रहा है। साथ ही बिजली और सौन्दर्यीकरण भी किया जाएगा। टेनिस कोर्ट का निर्माण कंपाउंड के उत्तरी हिस्से में किया गया है। जिसका संचालन भागलपुर टेनिस क्लब द्वारा किया जाता है। समय-समय पर खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया जाता है।

वहीं, भागलपुर फुटबॉल एंड एथेलिक एसोसिएशन के सहायक महासचिव आनंद मिश्रा के मुताबिक दोनों खेलों के लिए एक ही मैदान है। शतरंज प्रतियोगिता टॉउन हॉल में आयोजित की जाती है। इन खेल के मैदान के विकास करने की भी योजना बनाई गई है।

रबी को भी कहीं डुबो न दे पानी

रूप कुमार, भागलपुर । सरकार एक ओर जहां प्रति हेक्टेयर पांच क्विंटल अधिक अनाज उत्पादन का लक्ष्य बनाकर खेती को प्रोत्साहित कर रही है, वहीं दूसरी ओर सिंचाई संकट से तबाह किसान पटवन के लिए परेशान हो रहे हैं। खरीफ में मानसून की मार के कारण जहां खेतों में नमी नहीं के बराबर बची वहीं गेहूं की बुआई के बाद खेत पानी को तरस रहे हैं। जिले के अधिकांश नलकूप के नाकाम रहने से पटवन की समस्या का पटाक्षेप नहीं हो पा रहा है।

भागलपुर जिले में इस बार गेहूं की कुल बुआई का लक्ष्य 50 हजार हेक्टेयर रखा गया है। जिले में लघु सिचाई योजना का बुरा हाल है। 21 सिंचाई योजनाएं बंद पड़ी हुई है। सबसे बुरा हाल नलकूप विभाग का है। भागलपुर व कहलगांव अनुमंडल के सात प्रखंडों में स्थित कुल 145 नलकूपों में से 96 नलकूप बंद पड़े हैं। सिंचाई का काम मात्र 49 नलकूपों के भरोसे टिका हुआ है। उसमें भी बिजली की कमी से खेतों की प्यास नलकूप बुझा नहीं पा रहा है। किसानों का कहना है कि अगर सभी नलकूप दुरूस्त रहते तो आज सिंचाई की सुविधा काफी हद तक किसानों के लिए मददगार साबित होती। एक ओर जहां बारिश नहीं होने व जलाशयों में पानी नहीं रहने से पटवन की समस्या ने विकराल रूप धारण किए हुए है दूसरी ओर नलकूपों की खराबी से व्यवस्था कोढ़ में खाज जैसी बन गई है। नलकूप विभाग के अनुसार बंद 96 नलकूपों में से विद्युत दोष से 3, यांत्रिक दोष से 2, अन्य दोष से 58 व संयुक्त दोष से 33 नलकूप वर्षो से बंद पड़े हुए हैं।

जगदीशपुर व शाहकुंड प्रखंड का इलाका पथरीला रहने के कारण यहां एक भी नलकूप नहीं लगाया जा सका है। जिला कृषि पदाधिकारी दिनेश प्रसाद सिंह ने बताया कि अगर रबी सीजन में सिंचाई के लिए बंद पड़े नलकूपों की मरम्मत कर उसे चालू नहीं किया गया तो पटवन के अभाव में गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। हाल ही में कृषि टास्क फोर्स की बैठक में जिलाधिकारी राहुल सिंह ने भी बंद पड़े नलकूपों को चालू करने का निर्देश दिया है। बीएयू के कृषि वैज्ञानिक डॉ. मिर्जानुल हक ने बताया कि गेहूं को रबी सीजन में कम से कम चार बार सिंचाई चाहिए। गेहूं को पूरे सीजन में कुल 45 सेमी पानी की जरूरत पड़ती है। पर्याप्त पानी के अभाव में गेहूं का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि गेहूं के बुआई के 25 दिन बाद ही गेहूं को पहली सिंचाई की जरूरत पड़ती है।

नलकूप विभाग के कार्यपालक अभियंता ई. अरविन्द कुमार ने बताया कि खरीफ के सीजन में 37 बंद नलकूपों की मरम्मत के लिए प्रति नलकूप 20 हजार की राशि आई थी। इस राशि से इन नलकूपों की मरम्मत करा उसे चालू कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि बंद पड़े नलकूपों को चालू करने के लिए विभाग को पत्र लिख कर फंड की मांग की गई है। सूखाड़ के बाद से सरकार ने नलकूप से पटवन को किसानों के लिए फ्री कर दिया है।

शहर में चकाचक व चौड़ी हो जाएंगी सड़कें

मनीत कुमार मिश्र , भागलपुर पथ निर्माण विभाग की सड़कें शहर में चकाचक व चौड़ी हो जाएगी। जगह-जगह कैट्स आई, रोड साइनर व स्प्रींग कोस्टर लगेंगे। साथ ही चयनित जगह पर सड़क चौड़ीकरण किया जाएगा और गाड़ियों के लिए पार्किंग स्थल का निर्माण होगा। निर्माण कार्य आरंभ हो गया है। पहले चरण में तिलकामांझी चौक से घुरनपीर बाबा चौंक तक करीब एक किलोमीटर सड़क चौड़ीकरण कार्य आरंभ हो गया है।

पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता जेपी सिंह कश्यप ने बताया कि अभी वर्तमान में सड़क की चौड़ाई करीब 7 मीटर है जो बढ़कर 13 मीटर हो जाएगी। इस सड़क के दोनों ओर 700 मीटर गुणा 725 एमएम (नाला) आरसीसी का निर्माण हो रहा है। इसी मार्ग पर 300 मीटर लंबाई में फूटपाथ बनेगा। सैंडिस कम्पाउंड के उत्तरी गेट के पास के निकट पार्किंग स्थल तथा घुरनपीर बाबा चौक से पहले भी पार्किंग स्थल का निर्माण होगा। इस मार्ग में पड़ने वाले दो पुलिया का भी चौड़ीकरण हो रहा है। मेडिकल कॉलेज के सामने तथा घुरनपीर बाबा चौक पर स्थित पुलिया की चौड़ाई करीब 45 फीट हो जाएगी।

दूसरी ओर घुरनपीर बाबा चौक से समाहरणालय कचहरी चौक तक भी सड़क का चौड़ीकरण कार्य शुरू हो गया है। इस सड़क की चौड़ाई बढ़ाकर 13 मीटर कर दिया जाएगा। साथ ही 600 मीटर लंबा आरसीसी नाला का निर्माण चल रहा है। इस मार्ग में पड़ने वाले नगर निगम के एक भवन को हटाया जाएगा। इसके लिए पथ निर्माण विभाग ने नगर निगम को आवश्यक कार्रवाई के लिए पत्र लिख दिया है। घुरनपीर बाबा मजार के अगल-बगल भी सड़क का चौड़ीकरण हो जाएगा।

एनएच की तर्ज पर पथ निर्माण विभाग शहरी क्षेत्र की सड़क पर घुरनपीर बाबा चौक से सराय तक सड़क पर रोड साइनर, कैट्स आई और स्प्रिंग कोस्ट लगाएगा। इसके अलावा सुन्दरवती कॉलेज से ईशाकचक शीतला स्थान तक भी कैट्स आई इत्यादि लगाए जाएंगे।

रविवार, 26 दिसंबर 2010

सिल्क सिटी अब कहलाएगा मिल्क सिटी

रूप कुमार, भागलपुर
अब भागलपुर की एक नई पहचान दूध उत्पादन के क्षेत्र में बन रही है। अंग क्षेत्र में दूध उत्पादन की बढ़ी संभावना को देखते हुए सुधा डेयरी ने सिल्क सिटी को मिल्क हब बनाने की योजना बनाई है। इस योजना के तहत नए साल में दूध उत्पादन से लेकर समितियों की संख्या बढ़ाई जाएगी। वर्ष 1994 में सुधा डेयरी की स्थापना भागलपुर में हुई थी।

अभी 40 हजार लीटर दूध की होती है खरीद

भागलपुर में हर दिन सुधा 40 हजार लीटर दूध की खरीद करती है। इसमें से 10 हजार लीटर शहरी क्षेत्र के बूथों को आपूर्ति कर शेष दूध को सूबे से बाहर अन्य जिलों में भेजे जाते हैं।

कहां-कहां भेजे जाते हैं दूध

दिल्ली में पांच हजार लीटर, बोकारो में दस हजार लीटर, जमशेदपुर में पांच हजार लीटर, सहरसा व सुपौल में आठ हजार लीटर, देवघर में डेढ़ हजार लीटर, दुमका-जामताड़ा डेढ़ हजार लीटर दूध यहां से भेजे जाते हैं।

26 हजार पशुपालक जुड़े हैं, टर्न ओवर तीस करोड़ का

सुधा डेयरी से फिलहाल भागलपुर, मुंगेर व बांका के 26 हजार पशुपालक 340 समितियों के माध्यम से जुड़े हुए हैं। पिछले साल के मुकाबले सुधा का टर्न ओवर 20 करोड़ से बढ़कर 30 करोड़ पहुंच गया है। नए साल में टर्न ओवर 40 करोड़ का रखा गया है।

क्या है प्लानिंग

सुधा ने 50 हजार लीटर दूध खरीदने की प्लानिंग की है। नए साल में सुधा समितियों की संख्या 434 करने जा रही है। सुधा ने मुंगेर, बांका में 15 व 10 हजार लीटर क्षमता के दुग्ध शीत गृह को स्थापित किया है। इसके अलावा संग्रामपुर, सजौर, मदहतपुर, झंडापुर व सोनवर्षा में पांच से दो हजार लीटर की क्षमता के शीतगृह के जरिए पशुपालकों को दूध स्टोर करने में मदद मिल रही है। इसके अलावा पीरपैंती में पांच हजार लीटर वाला शीत गृह 25 लाख की लागत से, शाहकुंड प्रखंड के अंबा गांव में 15 लाख की लागत से 1 हजार लीटर, रजौन के कटचातर में 15 लाख की लागत से 1 हजार लीटर, मुंगेर के रामपुर में इतने ही लाख से 1 लाख हजार लीटर व बांका जिले में दो स्थानों पर 25 -25 लाख की लागत से 5-5 हजार लीटर की क्षमता के दो शीतगृह बनाए जाएंगे। किसानों को समितियों के माध्यम से दूध की राशि का भुगतान करने के बदले उन्हें जल्द ही एटीएम द्वारा राशि पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही है।

क्या कहते हैं अधिकारी

भागलपुर: सुधा के प्रबंध निदेशक पीके. वर्मा ने बताया कि भागलपुर को मिल्क हब बनाने के लिए सुधा ने योजना बनाई है। सुधा की योजना है 2015 तक हर गांव में दुग्ध उत्पादन सहकारी समिति का गठन हो। डेयरी में किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए ट्रेनिंग सेंटर बनाया जाएगा। इसके अलावा पशुओं के पौष्टिक आहार के लिए सुधा प्लांट की भी स्थापना की जाएगी। झारखंड के अलावा दिल्ली को दूध भेजने के बाद अब सुधा के द्वारा गुवाहटी को दूध भेजने की योजना है। जरूरत पड़ने पर सुधा के बूथ गांवों में भी खुलेंगे।

टैक्ट्रर के दस आवेदन स्वीकृत

भागलपुर। कृषि उपादान मेले में पॉवर टीलर का पॉवर देख किसान खुश हो गए। मेले में किसानों को करीब छह पॉवर टीलर उपलब्ध कराया गया।

विक्रेता सच्चिदानंद सिंह ने बताया कि पॉवर टीलर से किसानों को कई फायदे हैं। वे इससे जुताई के अलावा सिंचाई व रोशनी की व्यवस्था भी कर सकते हैं। इसके अलावा करीब 200 धातु कोठिला की भी बिक्री हुई। गटोर, रोटावेटर भी किसानों की चाहत बनी। प्रमुख गुलचरण मंडल ने बताया कि चैप कटर यानी कुट्टी काटने वाली मशीन नहीं मिलने से किसान निराश हुए।

जिला कृषि पदाधिकारी दिनेश प्रसाद सिंह ने बताया कि मेले में स्टेट बैंक व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा स्टॉल लगाकर दस किसानों का आवेदन ट्रैक्टर के लिए स्वीकृत किया गया है। जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ. योगेन्द्र प्रसाद ने बताया कि पशुपालन विभाग द्वारा लगाए गए स्टॉल पर तीन दिनों मं करीब 200 किसानों की समस्या का समाधान नौ पशु चिकित्सकों द्वारा किया गया।

संयुक्त कृषि निदेशक वैद्यनाथ महतो, सहायक कृषि निदेशक नवीन कुमार, मो. नईमउद्दीन, सहायक कृषि पदाधिकारी ज्ञानचंद, जिला कृषि पदाधिकारी नरेन्द्र कुमार लोहानी, मिथलेश कुमार आदि मेले में मौजूद थे।

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

यहां हल नहीं डंडे से होती है खेती

रूप कुमार, भागलपुर ।बालू से तेल निकालने की बात आपने लोकोक्ति के रूप में सुनी होगी। लेकिन सुविधा व संसाधन विहीन दियारा के किसान इसी बालू से तेल निकालकर अपनी किस्मत चमका रहे हैं। दियारा की इसी खेती ने वैज्ञानिकों को भी काफी प्रभावित किया है। गंगा नदी किनारे स्थित दियारा के किसान हर साल बाढ़ का पानी उतरते ही लाठी से घोंप कर मकई की बुआई करते हैं। लाठी ही उनके लिए हल का काम करती है। लाठी से किए छेद में मक्का का बीज डालकर मक्के की मुंहमांगी उपज लेते हैं। इस विधि से मक्के लगाकर प्रति हेक्टेयर 60 से 65 क्विंटल की उपज लेते हैं। खेती के इस तरीके की चर्चा सुन शनिवार को बीएयू के डीन एग्रीकल्चर सह प्राचार्य डॉ. अर्जुन प्रसाद सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस खेती का जायजा लिया। टीम में मक्का वैज्ञानिक डॉ. एस. एस. मंडल, डॉ. शंभु प्रसाद शामिल थे। मकई के लहलहाते पौधों ने वैज्ञानिकों को दिल जीत लिया। किसानों ने बताया कि दियारा में हर साल मक्के की खेती इसी घोंप पद्धति से की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि क्योंकि पानी उतरने के बाद जमीन में कीचड़ होता है। ऐसे में जुताई संभव नहीं है। सो, इस दलदली जमीन में वे लाठी से मकई को टोभते हैं। वैज्ञानिकों ने किसानों को सुझाव दिया की जिंक व फास्फोरस डालकर पौधों को और ताकत प्रदान कर सकते हैं। किसान नीरज साहू, उमाशंकर मंडल, खंतर मंडल आदि ने वैज्ञानिकों से कहा कि उन्हें वैज्ञानिकों का सहयोग मिले व मक्के के बाद खेती का कोई तरीका बताया जाए तो वे दियारे की जमीन को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना सकते हैं। डीन एग्रीकल्चर डॉ. एपी सिंह ने किसानों को मकई के बाद बालू वाली मिट्टी में कद्दु, नेनुआ, खरबुज सहित लत्तर वाली अन्य सब्जियों की खेती करने की सलाह दी।

उद्योगों से चमकेगा भागलपुर

अशोक अनंत, भागलपुर । 2011 जिला में उद्योगों के लिए नया सवेरा लेकर आएगा। भले ही बरारी स्थिति औद्योगिक प्रांगण में चार दशक पूर्व लगी कई औद्योगिक इकाईयों की फैक्ट्रियों की मशीनों का शोर बंद हो गया हो लेकिन उन फैक्ट्रियों के स्थान पर अब नयी फैक्ट्रिया लगाने का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। इसमें अहम् भूमिका बिहार औद्योगिक विकास प्राधिकार की है।

देखा जाय तो बरारी स्थित औद्योगिक प्रांगण में लगी तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा छोटी-बड़ी इकाईयां धीरे-धीरे बंद हो गयी। बंद होने के कारणों में बैंक द्वारा असहयोग रवैया भी एक कारण है तो दूसरा विधि व्यवस्था में आयी गिरावट अथवा राज्य सरकार द्वारा उपेक्षा नीति आदि भी कारणों में शामिल हैं। वहीं शहर में स्थित स्पन सिल्क मिल और स्पीनिंग मिल वर्षो पहले बंद हो गए। यहां कार्यरत कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गयी है। इन मिलों को पुन: चालू करवाने के लिए भले ही राजनैतिक दलों ने आश्वासन दिए हो लेकिन इस दिशा में अबतक कोई भी पहल नहीं हो पायी।

अब बरारी स्थित औद्योगिक प्रांगण में नए सिरे से उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं तो कहलगांव में नए उद्योगों के स्थापित करने की नई सूची है। जो बिहार औद्योगिक विकास प्राधिकार (बियाडा) के सौजन्य से फलीभूत होगा।

इकाईयां जो बंद हुई

बरारी स्थित औद्योगिक प्रांगण एवं निजी क्षेत्र में स्थापित माडर्न फूड इंडस्ट्रीज, काशी इस्पात, अरुण केमिकल, बिहार स्पन सिल्क मिल, विक्रमशिला सहकारिता सूत मिल, शिव शंकर फ्लावर मिल, शिवगौरी फ्लावर मिल, रामवंशी सिल्क मिल, उमा शंकर मिल सहित कई अन्य इकाईयां बंद हो गयी।

औद्योगिक प्रांगण में अब स्थापित की जा रही नई इकाईयां

बरारी स्थित औद्योगिक प्रागंण में बियाडा के सहयोग से अब तेजी से नई इकाईयों को स्थापित करने का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। बियाडा के सहायक विकास पदाधिकारी राहुल कुमार के मुताबिक वर्ष 2006-7 से बियाडा के माध्यम से उद्योग लगाने के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जाने लगा है। इस क्रम में बरारी स्थित 51.3 एकड़ जमीन में 90 इकाईयां स्थापित की गयी हैं। इनमें से 23 इकाईयां उत्पादन में हैं तथा 50 निर्माणाधीन हैं। 17 इकाईयों के लिए जमीन आवंटित की जा रही है। उक्त प्रांगण में जोधानी फ्लावर मिल, मिनरल वाटर, रंग, तेल, प्लास्टिक का थैला, आईसक्रीम, टेक्सटाइल, पशु चारा आदि इकाईयां शामिल हैं।

कहलगांव में भी कई इकाईयां स्थापित होगी

राहुल कुमार के मुताबिक कहलगांव में भी हैंडलूम पार्क सहित कई इकाईयां स्थापित करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गयी हैं। उन्होंने बताया कि कहलगांव में बियाडा की 1020 एकड़ जमीन है। इसमें 515 एकड़ जमीन इकाईयों के स्थापित करने के लिए आवंटित की जा चुकी हैं। यहां अंग प्रदेश हैंडलूम पार्क, सीमेंट, बिस्कुट, चावल, फूड पार्क, एक हजार मेगावाट बिजली उत्पादन आदि इकाईयां स्थापित की जाएंगी।

उपेक्षा नीति के कारण बंद हुई इकाईयां

इधर इस्टर्न बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकूटधारी अग्रवाल का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा स्थापित बृहत औद्योगिक प्रांगण में पिछले शताब्दी के अंतिम चरण में निजी तथा सरकारी क्षेत्र की कई औद्योगिक इकाईयां स्थापित हुई थीं। भागलपुर क्षेत्र के कई सिल्क उत्पादक और निर्यातक गिरती विधि व्यवस्था और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में इस क्षेत्र से पलायन कर अन्य राज्यों में चले गए। वहीं बैंक के असहयोग करने, सरकार की उपेक्षा एवं क्षेत्रीय औद्योगिक विकास प्राधिकार द्वारा उद्यमियों की समस्याओं के निदान की दिशा में अपनायी जा रही टालमटोल नीति तथा बिजली आपूर्ति की कमी आदि समस्याओं के कारण इकाईयां बंद हो गयी।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

शुरू हो गई नए साल के स्वागत की तैयारी

नए साल आने में महज कुछ दिन शेष रह गए हैं। साल की समाप्ति नए साल की तैयारी करने की याद लोगों दिला रही है। सभी अपने-अपने स्तर से प्लानिंग बनाने में लग गए हैं। कोई ग्रीटिंग कार्ड की खरीदारी कर रहा तो कोई अपने दोस्तों के साथ दूर कहीं पिकनिक का मजा लेने का मन बना रहा है। शहर में नए साल को ले जहां कार्ड की दुकानें सज रही हैं, वहीं रेस्तरां को नए साल के स्वागत के लिए सजाया जा रहा है।

क्षेत्र में पिकनिक स्पॉट की बात करें तो वे यहां गिने चुने ही हैं। इसमें सबसे मुख्य स्थल सैंडिस कम्पाउंड -जय प्रकाश उद्यान ही है। इसके अलावा शहर में कई ऐसे स्थल है जहां आप नए साल का स्वागत पूरी गर्मजोशी से कर सकते हैं।

जय प्रकाश उद्यान

शहर के हृदय स्थल पर स्थित जय प्रकाश उद्यान सालों से नए साल पर गुलजार होता रहा है। इस साल भी यहां लोगों की व्यापक भीड़ लगेगी। यदि आप नए साल पर घूमकर कर सेलिब्रेट करना चाहते हैं तो उसके लिए यह स्थान उपयुक्त है। यदि आप अपने परिवार और शुभचिंतकों के साथ पिकनिक का मजा लेना चाहते हैं तो उसके लिए भी यह उपयुक्त है।

लाला लाजपत पार्क

शहर के मानिक सरकार चौक से पश्चिम में स्थित नवनिर्मित पार्क नए साल पर उत्साह मनाने का उपयुक्त जगह है। यहां का पार्क व झरना अतिथियों को अलग ही एहसास कराता है। पार्क के कैंपस में एक रेस्तरां है और बच्चों के लिए झूले की व्यस्था है।

महर्षि मेंहीं आश्रम, कुप्पा घाट

तिलकामांझी चौक से करीब डेढ़ किलोमीटर उत्तर स्थित महर्षि मेंहीं के आश्रम (कुप्पा घाट) में नए साल के मौके पर हजारों लोगों की भीड़ लगती है। यहां के पार्क और प्राकृतिक छटा अतिथियों के मन को प्रफुल्लित कर देता है। महर्षि मेंहीं और नवनिर्मित संतसेवी जी का समाधी स्थल काफी खूबसूरत है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

बरारी वाटर व‌र्क्स, बरारी

तिलकामांझी-बाररी रोड में स्थित माउंट कार्मेल स्कूल से उत्तर हनुमान घाट के बगल में स्थित बरारी वाटर व‌र्क्स नए साल पर पिकनिक मानने व घूमने के लिए खूबसूरत जगहों में से एक है। यहां आने वाले अतिथियों को शहर के कोलाहल से दूर शांति का अनुभव होता है। गंगा किनारे स्थित यह स्थल लोगों को किसी पहाड़ी स्थल का अनुभव कराती है। अंग्रेज काल में बने वाटर व‌र्क्स अतिथियों को काफी पसंद आता है। यहां पर आप नौका से गंगा में नौका विहार का आनंद लेने जा सकते हैं। इसके लिए कुछ नावें भी लगी रहती हैं।

रविन्द्र भवन, भागलपुर विवि

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन के बगल में स्थित रविन्द्र भवन (टिल्ला कोठी) पर नए साल के मौके पर घूमने आप जा सकते हैं। एक तो रविन्द्र भवन की बनावट देखने लायक है इसके अलावा इस स्थल की भौगोलिक स्थिति लोगों को विशेष रूप से आकर्षित करती है। यह दिखने वाला प्राकृतिक छटा बरबस लोगों को आकर्षित करता है।

शाहजंगी पीर स्थल

शहर के दक्षिणी हिस्से में स्थित शाहजंगी पीर स्थल पर नए साल पर काफी भीड़ लगती है। यहां आसपास के लोग पिकनिक मनाने आते हैं। शहजंगी में स्थित बड़ा तालाब स्थल की खूबसूरती को बढ़ता है।

बिहार कृषि विवि, सबौर

नवनिर्मित बिहार कृषि विवि, सबौर परिसर काफी समय से लोगों को आकर्षित करता रहा है। यहा हर साल नए साल पर भीड़ लगती है। इस बार यहां का परिसर बदला-बदला नजर आएगा। विवि बनने के बाद कई निर्माण कार्य हुए और चल रहे हैं। यह स्थल शहर से मात्र आठ किलोमीटर दूर कोलाहल रहित है।

दिगम्बर जैन मंदिर, नाथनगर

जैन धर्मावलंबियों का सिद्दक्षेत्र दिगम्बर जैन मंदिर में नए साल पर काफी भीड़ जमा होती है। धार्मिक रूप के अलावा यहां स्थित पार्क, पौराणिक सुरंग द्वार, मंदिर में नक्कासी देखने लायक है। यह आपको अनुशासन का विशेष अनुभव होगा। मंदिर प्रांगण में स्थित पार्क बहुत ही खूबसूरत है। इस पार्क में देखने लायक बहुत कुछ है।

महासभा का दूसरी बार विभाजन

अखिल भारतीय संतमत-सत्संग महासभा दूसरी बार रविवार को बंट गया।

सबौर स्थित महर्षि संतसेवी ध्यानयोग आश्रम में 'अखिल भारतीय संतमत महासभा' नाम से संगठन का गठन हुआ है। स्वामी आशुतोष 'गुरुस्नेही' इसके प्रधान महात्मा हैं। संगठन का केंद्रीय आश्रम सबौर स्थित

महर्षि संतसेवी ध्यानयोग आश्रम होगा। इसकी स्थापना पिछले वर्ष सबौर में स्वामी आशुतोष ' गुरुस्नेही ' ने की थी। स्वामी आशुतोष ने गत वर्ष विवादों के कारण कुप्पाघाट आश्रम छोड़ दिया था।

नवगठित 'अखिल भारतीय संतमत महासभा' के अधिकांश पदाधिकारी 'अखिल भारतीय संतमत-सत्संग महासभा में पहले पदाधिकारी रह चुके हैं। नवगठित संगठन में 'सत्संग' शब्द का प्रयोग नहीं है।

इसके अलावा कुप्पाघाट से प्रकाशित 'शांति संदेश' की तरह ध्यानयोग आश्रम से भी 'सदगुरु शांति संदेश ' मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हो गया है। पत्रिका के संबंध में स्वामी आशुतोष ने बताया कि पत्रिका का विधिवत पंजीयन भी हो गया है। पत्रिका को टीवीएल नंबर भी मिल गया है।

पूर्व में महर्षि मेंहीं बाबा के निधन के बाद शाही बाबा महासभा से अलग हो गए थे। उसके बाद स्वामी आशुतोष ने अलग होकर अपना संगठन बनाया है।

वहीं रविवार को ध्यानयोग आश्रम में आयोजित बैठक में सर्वसम्मति से अखिल भारतीय संतमत महासभा की स्थाई कमेटी का गठन किया गया। इसमें सर्वसम्मति से मुख्य संरक्षक गजानंद तुलस्यान (रांची), संरक्षक विरंची प्रसार सिंह (खगड़िया), अध्यक्ष सच्च्चदानंद (रांची), उपाध्यक्ष गोकर्णजी (भागलपुर) और कैलाश प्रसाद अग्रवाल, महामंत्री अजेन्द्रपति त्रिपाठी (बक्सर),मंत्री राम लखन यादव (मायागंज) और राजकुमार भुवानिया, प्रचार मंत्री दिलबर प्रसाद गुप्ता (भागलपुर),कोषाध्यक्ष इं.गोविंद मेहता और अंकेकक्षण प्रकाश प्राण (सुपौल) का चुनाव किया गया। इसके अलावा 20 सदस्यों की कार्यकारिणी भी गठित की गई है। बैठक में निर्णय लिया गया कि साधकों के लिए हर साल एक माह का ध्यान योग शिविर का आयोजन होगा, जिलों में संतमत का जिलाधिवेशन होगा, सदगुरु शांति संदेश पत्रिका का सभी सदस्य अपने क्षेत्र में प्रचार-प्रसार करेंगे इसके अलावा आश्रम के संचालन के कई बड़े-छोटे निर्णय लिए गए। बैठक की अध्यक्षता सच्चिदानंद सिंह ने की और संचालन प्रकाश प्राण ने किया।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

फार्म भरने की तिथि घोषित

एलएलएम पार्ट वन एवं एलएलएम पार्ट टू परीक्षा 2010 के फार्म भरने की तिथि घोषित कर दी गई है। दोनों पार्ट के लिए परीक्षा फार्म भरने की तिथि 20 दिसंबर से 23 दिसंबर तक बिना दंड शुल्क के एवं 24 दिसंबर को दंड शुल्क के साथ फार्म भरा जाएगा। वहीं, तीन वर्षीय एलएलबी पार्ट वन के फ‌र्स्ट सेमेस्टर एवं पांच वर्षीय लॉ डिग्री कोर्स 2011 का परीक्षा फार्म 20 से 24 दिसंबर तक बिना दंड शुल्क के एवं 25 एवं 26 को दंड शुल्क के साथ फार्म भरा जाएगा।

आयुर्वेद महाविद्यालय में चालू होगा छात्रों का नामांकन : चौबे

स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि आयुर्वेद महाविद्यालय में शीघ्र ही नामांकन चालू हो इसके लिए वे भरपूर प्रयास करेंगे। महाविद्यालय के जीर्णोद्धार के लिए एक करोड़ रुपये से अधिक राशि आवंटित कर दी गई है। शनिवार को नाथनगर स्थित अष्टांग आयुर्वेद महाविद्यालय अस्पताल का निरीक्षण करने के बाद स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने महाविद्यालय के कर्मचारियों को आश्वासन देते हुए उक्त बातें कहीं।

चौबे ने कहा कि नाथनगर सहित राज्य के अन्य बंद आयुर्वेद महाविद्यालय को भी पुन: चालू कराने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। आप लोग (कर्मचारियों) के भी दिन बहुरने वाले हैं, इंतजार कीजिए। चिकित्सकों एवं शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पद स्वीकृत किए जाएंगे। इसके लिए मुख्यमंत्री ने हरी झंडी दे दी है। सेवानिवृत शिक्षकों की भी बहाली की जाएगी।

महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य एवं कर्मचारियों द्वारा यह जानकारी देने पर कि महाविद्यालय की जमीन हड़पने की साजिश की जा रही है, स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। प्रभारी प्राचार्य डॉ. पवन वर्मा ने बताया जमीन हड़पने के चार मामले न्यायालय में चल रहे हैं।

2004-5 सत्र से नामांकन बंद

नाथनगर स्थित आयुर्वेदिक महाविद्यालय अस्पताल 1946 में प्रारंभ हुआ था। सरकार ने 1985 में अधिग्रहण किया। यहां कई विभागों की पढ़ाई होती थी। तब कई प्रकार की दवाएं भी मरीजों को दी जाती थीं। वर्तमान में प्रतिवर्ष मात्र 60 हजार रुपये दवा मद में आवंटित किए जाते हैं। 2004-05 से छात्रों के नामांकन पर सरकार ने रोक लगा दी। मात्र चार छात्र बचे हैं, जो अंतिम वर्ष में हैं।

जीर्णोद्धार की राशि है या वर्ष 2011-12 का बजट?

शनिवार को स्वास्थ्य मंत्री अश्रि्वनी कुमार चौबे ने कहा कि महाविद्यालय के जीर्णोद्धार के लिए एक करोड़ से ज्यादा राशि की स्वीकृति दी गई है। हालांकि महाविद्यालय सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2011-12 के लिए सरकार द्वारा बजट की मांग की गई थी। सो, एक करोड़ 26 लाख रुपये का बजट बनाकर भेजा गया है। इसमें शिक्षक व कर्मचारियों के वेतन के अलावा अन्य राशि भी शामिल है। अब आवंटित राशि से महाविद्यालय का जीर्णोद्धार होगा या वेतन आदि दिए जाएंगे। यह तो महाविद्यालय प्रशासन या स्वास्थ्य मंत्री ही बेहतर जानते होंगे।

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

कोरियर से प्रतिस्पर्धा के लिए पोस्ट ऑफिस तैयार

डाक विभाग निजी कोरियर कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के लिए पूरी तरह तैयार हो रहा है। विभाग ने स्पीड पोस्ट सेवा को बेहतर बनाने के लिए अपने को अपडेट करना शुरू कर दिया है। इसके लिए बिहार के तीन शहरों पटना, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में स्पीड पोस्ट हब सेंटर बनाया गया है। हब सेंटर बनने से पहले जहां स्पीड पोस्ट डिलीवरी में पांच से आठ दिनों का समय लग जाता था, अब 72 घंटों में ही डिलेवरी हो जाएगी।

डाक अधीक्षक आरएन मिश्रा ने बताया कि पिछले एक पखवारे से 'स्पीड पोस्ट हब सेंटर' कार्य करना शुरू कर दिया है। यहां प्रतिदिन औसतन पांच से सात हजार स्पीड पोस्ट आ रहे हैं। उसी दिन स्पीड पोस्ट को स्कैन कर विभिन्न सेंटरों को भेज दिया जाता है। भागलपुर से पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, पाकुड़ और साहिबगंज सहित अन्य सेंटरों पर स्पीड पोस्ट का पैकेट भेजा जाता है।

भागलपुर में स्कैन होने से ग्राहक इंटरनेट पर अपने स्पीड पोस्ट का टेक एंड ट्रेस ले सकेंगे। सेवा को सुचारू रूप से चलाने के लिए अतिरिक्त कर्मचारी भी लगाए गए हैं।

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

भागलपुरी दूध पर आया दिल्ली का दिल

बिहार के बदलाव में दूध भी शामिल हो गया है। राष्ट्रीय राजधानी में दिहाड़ी, पढ़ाई व पत्रकारिता के क्षेत्र में परचम फहराने के बाद बिहारी दूध ने भी दिल्ली वालों को अपना मुरीद बना लिया है।

बाढ़ के कारण जब दिल्ली को पंजाब, हरियाणा से होने वाली दूध की आपूर्ति घटी तो वहां की डेयरी ने बिहार से दूध की मांग की। बिहार में भी भागलपुर डेयरी की दूध ने तो सब का दिल जीत लिया है। प्रयोग के तौर पर यहां से एक पखवाड़े के अंदर 40 हजार लीटर दूध दो टैंकर द्वारा भेजा गया। शुद्धता व मिठास से युक्त दूध की मांग इतनी बढ़ी की दिल्ली डेयरी ने अब हर रोज भागलपुर की सुधा डेयरी से 15 हजार लीटर दूध की मांग की है। फिलहाल दिल्ली डेयरी की इस मांग को पूरा करने के लिए यहां टैंकर का टोटा हो गया है। बुधवार को 16 हजार लीटर क्षमता वाले टैंकर में दूध की तीसरी खेप भेजी गई है। दिल्ली को दूध भेजने में शुद्धता को लेकर सुधा डेयरी बड़ी सावधानी बरत रही है। दियारा के दूध के बदले नवगछिया, बिहपुर, सजौर, सुल्तानगंज, गौराडीह, सजौर के इलाके का दूध डेयरी में विशेष रूप से इकट्ठा करने के बाद उसे और भी शुद्ध बनाया जाता है। दिल्ली में दूध का बड़ा बाजार उपलब्ध होने के बाद सुधा की स्थानीय डेयरी ने दिल्ली डेयरी से इसका वेंडर निबंधन भी करा लिया है। दिल्ली डेयरी के पैकिंग स्टेशन के रूप में भागलपुर की डेयरी शामिल हो गई है।

सुधा डेयरी के प्रबंधक पीके.वर्मा के निर्देश पर उपप्रबंधक अशोक पांडे की निगरानी में दिल्ली भेजे जाने वाले दूध को तैयार किया जाता है। उपप्रबंधक ने बताया कि दिल्ली भेजे जाने वाले दूध में सेल्फ लाइफ बहुत जरूरी है। इसलिए दूध को पहले दो से तीन डिग्री पर ठंडा कर उसे थर्मस की तकनीक पर आधारित टैंकर में स्टोर किया जाता है। टैंकर को दिल्ली पहुंचने में तीन दिन का समय लगता है। वहां छह डिग्री तापक्रम पर दूध को उतारा जाता है। दिल्ली के लिए एकत्रित दूध को 60 डिग्री पर उच्च श्रेणी की टेस्ट से गुजरना पड़ता है। दिल्ली की मांग को पूरा करने के लिए फिलहाल यहां सात टैंकर की जरूरत है। लेकिन महज एक टैंकर के कारण परेशानी हो रही है। ऐसे में सुधा डेयरी का टर्न ओवर इस साल 20 करोड़ से बढ़कर 30 करोड़ तक पहुंच गया है। वर्ष 11 तक इसे 40 करोड़ करने की योजना है।

क्या कहते हैं अधिकारी

सुधा डेयरी के प्रबंधक पीके. वर्मा का कहना है भागलपुर के गांवों का दूध दिल्ली में काफी पसंद किया जा रहा है। किसानों के लिए यह गौरव की बात है कि उनकी दूध राजधानी में हाथो-हाथ बिक रही है। पशुपालकों के लिए दिल्ली के रूप में दूध का एक बड़ा बाजार मिला है। आने वाले समय में यहां का दूध गुवाहटी भी भेजने की योजना है। भागलपुर को बिहार में मिल्क हब के रूप में विकसित करने की योजना पर सुधा कार्य कर रहा है।

आनंद विहार तक चलने लगी विक्रमशिला एक्सप्रेस

भागलपुर से प्रदेश के राजधानी तक के नेताओं, बड़े-बड़े व्यापारियों व व्यापारिक संगठनों के जोरदार विरोध भी रेल मंत्रालय के निर्णय को नहीं बदल सका। आखिरकार रेल मंत्रालय के निर्णय के अनुसार भागलपुर-नयी दिल्ली विक्रमशिला एक्सप्रेस नयी दिल्ली की बजाए एक दिसंबर से करीब दस किमी पहले आनंद विहार स्टेशन तक ही चलने लगी है।

रेलवे के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि एक दिसंबर से आरक्षण केन्द्र के कंप्यूटरों में भी नई दिल्ली की जगह आनंद विहार फिड कर दिया गया है। टिकट में भी अब आनंद विहार ही प्रिंट होता है। परिचालन समय में परिवर्तन नहीं किया गया है। वहीं रेलवे के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि विक्रमशिला एक्सप्रेस के बाद फरक्का एक्सप्रेस को भी अब आनंद विहार स्टेशन तक चलाने की योजना है। सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली स्टेशन में गाड़ियों की संख्या काफी होने से प्लेटफॉर्म पर लगाने तथा यात्रियों की भीड़ को देखते हुए ही विक्रमशिला एक्सप्रेस सहित पूर्व रेलवे की कई महत्वपूर्ण ट्रेनें नई दिल्ली के बदले आनंद विहार स्टेशन तक चलाई जाएंगी। वहीं मुंबई की अधिकतर ट्रेनों को हजरत निजामउद्दीन स्टेशन कर दिया गया है। विक्रमशिला एक्स. मंगलवार से दो कोच और बढ़ने के बाद भी इस ट्रेन में प्रतिक्षा सूची में खास कमी नहीं आ पाई है।

प्रमंडलीय व जिला कार्यालय के लिए जमीन की तलाश

भागलपुर जिला प्रशासन ने प्रमंडलीय व जिला कार्यालय के लिए शहरी क्षेत्र से दूर जमीन की तलाश शुरू कर दी है। सरकार के निर्देश पर संभावित जमीन की तलाश की जा रही है। सरकार ने 50 एकड़ जमीन की तलाशी करने का निर्देश दिया है।

सरकार के निर्देश पर अति संक्षिप्त निरीक्षण में स्थानीय अधिकारियों को सबौर, जगदीशपुर और अमरपुर मार्ग में 50 एकड़ जमीन का पता चला है। ये सभी रैयती जमीन हैं। जमीन के अधिग्रहण में अनुमानित लागत करीब 11 करोड़ रुपये आएगी। जिस रैयत से जमीन ली जाएगी, उन्हें सवा दो गुणा अधिक मुआवजा मिलेगा।

सरकारी सूत्रों ने बताया कि कैबिनेट के फैसले के बाद सभी जिला पदाधिकारियों से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी गई थी। रिपोर्ट में जिला प्रशासन को यह बताना था कि 50 एकड़ जमीन अधिग्रहण में अनुमानित लागत कितनी आएगी। इसके आधार पर तत्काल प्रारंभिक रिपोर्ट भेज दी गई है।

नियुक्ति की मांग को लेकर अनुकंपा आश्रितों ने दिया धरना

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अनुकंपा समन्वय समिति के तत्वावधान में नियुक्ति की मांग को लेकर गुरुवार को विवि प्रशासनिक भवन के सामने अनुकंपा आश्रितों ने धरना दिया। दोपहर बाद प्रति कुलपति डॉ. धु्रव कुमार के आश्वासन के बाद धरना समाप्त हुआ। इस सबंध में समिति के सचिव प्रभु नारायण मंडल ने बताया कि उनलोगों को प्रति कुलपति ने आश्वासन दिया है कि 26 जनवरी तक का समय दें, उसके बाद उनलोगों की मांगो को पूरा कर दिया जाएगा। धरना में संजय कुमार, प्रभु नारायण मंडल, जीवन राम, अश्रि्वनी कुमार, रंजीत कुमार सिन्हा, संजीव कुमार मिश्रा, अमरदेव झा, दिलीप झा, मिहिर कांत झा, श्रवण कुमार, लडडु सिंह, सुरेश चौधरी, संजय कुमार, गोपाल कुमार आदि शामिल थे।

मक्के के नए मर्ज ने लिया जन्म

मक्के में दाना नहीं लगने की शिकायत के बाद मुनाफेदार मक्के की खेती करने वाले किसानों की मुश्किलें एक नई बीमारी ने बढ़ा दी है। दरअसल मक्के को पहली बार जीवाणु जनित रोग का ग्रहण लगा है। जीवाणु जनित बीमारी मक्के में पहले नहीं होती थी। लेकिन हाल ही में इस रोग के फैलने के कारण मक्के के पौधे में भी गलन की शिकायत मिलने लगी है।

दरअसल इस बीमारी के कारण जड़ से ऊपर का हिस्सा भी गलने लगता है। तना यानी कल्ला भी सड़ जाता है। सड़ा कल्ला सड़ी मछली जैसी बदबू करता है। भागलपुर जिले में इस बीमारी ने पहली बार अपना पंजा फैलाया है। कृषि विभाग के वैज्ञानिक भी इस रोग से चिंतित हो उठे हैं। रोग के निदान का प्रयास किया जा रहा है। पौधा संरक्षण विभाग को हाल ही में मक्के में लगने वाली इस बीमारी का पता चला है। खरीफ सीजन में नवगछिया अनुमंडल के भवानीपुर गांव के दिनेश यादव व झंगली रजक के मक्के के खेत में इस बीमारी को पाया गया। पहले तो किसानों ने अपने स्तर से खाद विक्रेताओं से कीटनाशक लेकर रोग को खत्म करने का प्रयास किया। जब मक्के का मर्ज बढ़ता ही गया तो किसानों ने इसकी सूचना कनीय पौधा संरक्षण विभाग को दी। नवगछिया के पौधा संरक्षण पर्यवेक्षक राजकुमार ने खेत का निरीक्षण कर इस बीमारी की जांच की। उन्होंने किसानों को ब्लीचिंग पाउडर के छिड़काव की सलाह दी। लेकिन इससे भी रोग नहीं खत्म हुआ। आलम यह है कि खेत में लगे करीब 60 फीसदी मक्का पूरी तरह बीमारी की भेंट चढ़ गया। कनीय पौधा संरक्षण विभाग के वैज्ञानिक सतीश चंद्र झा ने बताया कि मक्के में पहले फुफूंदनाशी या फिर कीट से बीमारी होती थी। लेकिन इस बार जीवाणु जनित बीमारी हुई है। मक्के की बीमारी रबी सीजन में न हो इसके लिए किसानों को पौधा संरक्षण विभाग द्वारा सलाह दी गई है वे मक्के की बुआई में निर्धारित दूरी का पालन करें। इसके अलावा सूर्य की रोशनी व हवा के लिए मक्के के खेत में पर्याप्त व्यवस्था करें। बुआई के पूर्व मक्के के बीज को उपचारित करें। मिट्टी की जांच कराना भी आवश्यक है। श्री झा ने बताया कि मक्के की नई बीमारी को देखते हुए इससे निबटने के लिए इस बार नजर रखी जाएगी। बीमारी की वजह मक्के की बुआई में दूरी का पालन नहीं करना भी है। अगर इस बार भी मक्के में ऐसी बीमारी पाई गई तो बीएयू के वैज्ञानिकों की मदद लेकर किसानों को नुकसान से बचाया जाएगा। विभाग का कहना है कि अगर मक्के में ऐसी बीमारी लगे तो तत्काल छोटे पौधों को खेत में ही दफन कर देना चाहिए। यह बीमारी एक पौधे से दूसरे पौधे में पकड़ती है।

बिटिया की डोली पर भी मंहगाई की मार

हाय रे मंहगाई। बाबुल के हजारो सपने। बिटिया के लाखों अरमान। सगे-संबंधियों की करोड़ों ख्वाहिशें। इन अरमानों व ख्वाहिशों के बीच आज कोई भी मंहगाई की मार से बच नहीं पाया है। मंहगाई ने लोगों के सपनों के महल में सेंध लगाकर उनके अरमानों को लूटा है। तभी तो आज घरों में सजे मंडपों की जगह मंदिरों व न्यायालयों में सात जन्मों तक साथ रहने की कसमें खाने के प्रचलन में बेतहाशा वृद्धि हो गई है।

बूढ़ानाथ मंदिर के प्रबंधक बाल्मिकी कुमार सिंह की मानें तो अब ज्यादा आय वाले लोग भी पहाड़ सरीखे हो चले शादी के खर्चो से बचने के लिए मंदिरों में बेटे-बेटियों की शादी करते हैं। वे कहते हैं कि आडंबरों से भरे समाज में इस बढ़ते प्रचलन ने एक नए सोच का संचार किया है। मंदिरों व कोर्ट में शादी कर लोग दहेज जैसी कुप्रथाओं से भी समाज को बचाने का काम करते हैं। बाल्मिकी सिंह बताते हैं कि मंदिरों में शादियां एक हजार के खर्चे में संपन्न हो जाती हैं। वहीं घर से शादी करने का मतलब है लाखों का खर्चा। उन्होंने बताया कि चालू वर्ष में बूढ़ानाथ मंदिर से अब तक 600 से अधिक शादियां हो चुकी हैं।' श्री सिंह की बात में हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कहीं न कहीं पिता के चेहरों पर घर से बेटी विदा न कर पाने का मलाल तो रह ही जाता है। स्वरूप लाल बताते हैं कि 'सभी माता-पिता बेटियों की शादी धूमधाम से करना चाहते हैं। लेकिन कई मध्यम व निम्नवर्गीय परिवार आज लाखों का बोझ नहीं उठा पाते हैं। खोखले स्वाभिमान से ग्रस्त होकर व कर्ज लेकर बेटियों की शादी करने के पहले लोग अब दो बार सोचते हैं। क्योंकि उन्हें कर्ज चुकाना भी पड़ता है। फिर अच्छा घर-वर मिले तो आपसी सामंजस्य से फिजूल खर्ची से बचा जा सकता है।

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

आधा दर्जन कॉलेजों के प्राचार्यो का हुआ तबादला

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. केएन दुबे ने आधा दर्जन कॉलेजों के प्राचार्यो का तबादला कर दिया है। बुधवार को इस आशय की अधिसूचना विवि प्रशासन ने जारी कर दी है।

आरडी एण्ड डीजे कालेज से डॉ. आरपीसी वर्मा का तबादला एसएसवी कॉलेज कहलगांव कर दिया है। वहीं एसएसवी कॉलेज कहलगांव से डॉ. रामवचन सिंह का केएमडी कॉलेज परबत्ता, कोशी कॉलेज खगड़िया से डॉ. जर्नादन शर्मा का आरडीएण्ड डीजे कॉलेज मुंगेर, एसएम कॉलेज में वर्तमान समय में पदस्थापित डॉ. कुमकुम सिंह का महिला कॉलेज खगड़िया, महिला कॉलेज खगड़िया से डॉ. अर्चना साह का एमएएम कॉलेज नवगछिया, डीएसएम कॉलेज झाझा से डॉ. रामकुमार मंडल का बीआरएम कॉलेज मुंगेर कर दिया गया। वहीं डीएसएम कॉलेज झाझा में प्रकाश झा को प्रभारी प्राचार्य एवं डॉ. शंकर लाल तुलसियान को कोशी कॉलेज खगड़िया का प्रभारी प्राचार्य बनाया गया है।

जहर पी बचा रहे है जिंदगी

जल ही जीवन है, यह बात जग जाहिर है। इसी मान्यता और जरूरत की वजह से जो भी जल मिलता है उसे पीना ही पड़ता है। वह भी बिना सोचे कि यह जल जहर है या अमृत। जब कि हर जगह जल को अमृत ही बताया गया है। फिर भी गंगा पार नवगछिया के लोग अमृत रूपी जहरीले जल को ही वर्षो से पीकर अपनी जिंदगी बचा रहे हैं। नवगछिया का इलाका चाहे वह कचहरी परिसर हो या जेल परिसर, या फिर नवगछिया शहर सब के सब पी रहे है जहर। यहां के जल में आयरन, फ्लोराइड एवं आर्सेनिक जैसे पदार्थ प्रचुर मात्रा में मौजूद है। जिसकी वजह से इस क्षेत्र के अधिकांश लोग गैसट्रिक, मस्तिष्क ज्वर, मानसिक थकान, दांत में कालापन, अल्प शरीरिक विकास, बौनापन, दुर्बलता के साथ-साथ चर्मरोगों से भी ग्रसित है। इसके अलावा ब‌र्त्तनों के साथ साथ कपड़े पीला होना, खाना पकाने में देर लगना, पानी से कभी-कभी दुर्गन्ध आना, ट्यूबेल पाईप का जल्द क्षतिग्रस्त होना जैसी समस्याएं तो इस क्षेत्र में आम हो चुकी है। इन सभी समस्याओं की जानकारी स्थानीय पदाधिकारियों को भी बखूबी है। तभी तो नवगछिया के अधिकांश पदाधिकारी अपने फिल्टर का पानी हमेशा साथ रखते है। खुद तो वही जल पीते है पर औरों को जहर घुला जल ही पिलवाते है। कचहरी परिसर, जेल परिसर तथा शहर में लोक स्वास्थ्य विभाग द्वारा वर्षों से बोरिंग से की जा रही जलापूर्ति में भी यही जहर घुला है। जिसका आम लोगों को उपयोग करना मजबूरी है। साधन संपन्न चुनिंदा लोगों ने तो एक्वागार्ड और फिल्टर लगा लिया है जो आम लोगों के बस की बात कहां। ये तो सरकार के भरोसे होने वाली व्यवस्था का इंतजार कर रहे है।

पाश्चात्य संस्कृति में गुम हो गई पालकी की परंपरा

बीते जमाने कि बात है जब कोई शादी करने जाता था तो उसे पालकी में बैठाकर ले जाया जाता था और शादी करके दुल्हन को भी उसी पालकी में दुल्हे के साथ बैठाकर लाया जाता था और पालकी को उठाने के लिये कहार भी होते थे। परन्तु आधुनिकता के इस दौर में पालकी का रिवाज समाप्त हो गया है। अब इसकी जगह मोटर कार ने ले ली है। कहते हैं कि पालकी के लिये कहार जाति के लोग हुआ करते थे जो पालकी भाड़ा पर लगाते थे और लगन के समय में इनकी खूब कमाई होती थी। इतना ही नहीं पालकी भी कई प्रकार के होते थे कुछ सामान्य दर्जे के होते थे तो कुछ अव्वल दर्जे के। शादी के अवसर पर जैसी पालकी की मांग कि जाती थी कहार वैसा मुहैया कराते थे। कुछ संपन्न घराने के लोग अपनी पालकी भी रखते थे जिसे ले जाने के लिये कहार को ही बुलाया जाता था। परन्तु आजकल पालकी सिर्फ फिल्म में ही देखे जाते हैं। पालकी कि परंपरा समाप्त होने से कहार जाति के लोग भी बेरोजगार हो गये है और रोजगार कि तलाश में अन्यत्र पलायन कर रहे हैं। पालकी के व्यवसाय से ही उसके परिवार का भरण-पोषण होता था। कहार जाति के वयोवृद्ध उमेश सिंह बताते है कि पालकी का निर्माण आकर्षक साज-सज्जा के साथ किया जाता था। पालकी उठाने के लिये दोनों तरफ मोटा बांस होता था और चकोर आकार की पालकी बनी होती थी जिसमें एक दरवाजा होता था। पालकी ले जाने के क्रम में जब कहार थक जाते थे तो पालकी को डंडे पर खड़ा किया जाता था उसे नीचे रखने की परंपरा नहीं थी।

मनरेगा के छह कार्यक्रम पदाधिकारियों का पदस्थापन

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम (मनरेगा) के संचालन के लिए छह नए कार्यक्रम पदाधिकारियों का पदस्थापन किया गया है तथा तीन के कार्यक्षेत्र बदले गए हैं।

नीरज कुमार को पीरपैंती में तथा धर्मेन्द्र कुमार को गोपालपुर से सन्हौला प्रखंड में पदस्थापित किया गया है। नवनियुक्त कुमार मनीष को जगदीशपुर भेजा गया है। इम्तियाजुल हक को सबौर से बदल कर गौराडीह में पदस्थापित किया गया है। नवनियुक्त बनीला निशात राईन को सबौर तथा राजीव कुमार सिंह का पदस्थापन सुल्तानगंज में किया गया है। नवनियुक्त संजय कुमार ठाकुर को नाथनगर का कार्यक्रम पदाधिकारी बनाया गया है। जितेन्द्र कुमार को शाहकुंड व अमित कुमार को सन्हौला से नवगछिया प्रखंड में पदस्थापित किया गया है। नवनियुक्त हंसराज कुमार को खरीक, रंजन कुमार रत्नाकर को रंगरा तथा रमणीकांत सूरज को नारायणपुर भेजा गया है। नीरज कुमार ठाकुर को बिहपुर, शशिकांत शास्त्री को जगदीशपुर से गोपालपुर भेजा गया है। संजय कुमार झा को कहलगांव तथा कविता कुमारी को इस्माइलपुर में ही रखा गया है। उप विकास आयुक्त ने सभी कार्यक्रम पदाधिकारियों से छह तक योगदान और प्रभार लेने का निर्देश दिया है।

ग्रामीण विकास विभाग पिछले तीन महीने से मनरेगा के कार्यों की समीक्षा कर रहा है। समीक्षा में यह पाया गया है कि अधिकतर कार्यक्रम पदाधिकारी अपने कार्यों में शिथिलता बरत रहे हैं। परिणामस्वरूप धरातल पर कार्य नहीं दिख रहा है। हाल ही में दो दर्जन पंचायत रोजगार सेवकों को इसी आधार पर हटाया गया है। कार्यक्रम पदाधिकारियों के स्थानांतरण और पदस्थापन से यह उम्मीद जताई गई है कि कार्य में सुधार होगा।

गांवों के लिए रवाना हुआ कृषि विकास रथ

डीआरडीए परिसर से गुरुवार को डीएम राहुल सिंह ने कृषि विकास रथ को गांवों के लिए रवाना किया। इस रथ पर कृषि विकास से जुड़ी सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार का जिम्मा है। रथ को पटना में तैयार किया गया है।

डीएम ने रथ रवानगी के बाद विभिन्न प्रखंडों में आयोजित होने वाले कृषि विकास उत्सव की भी समीक्षा की। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि किसानों को हर संभव सहायता विकास उत्सव में मिलनी चाहिए। इस मौके पर डीडीसी गजानंद मिश्रा, जिला कृषि पदाधिकारी दिनेश प्रसाद सिंह, आत्मा के परियोजना निदेशक संजय कुमार सिंह, कनीय पौधा संरक्षण पदाधिकारी सतीशचंद्र झा के अलावा अन्य अधिकारी मौजूद थे। कृषि विकास उत्सव के प्रथम दिन पीरपैंती व कहलगांव प्रखंड में आयोजित कार्यक्रम में महोत्सव सा माहौल रहा। जिला कृषि पदाधिकारी व आत्मा के परियोजना निदेशक को विकास उत्सव की निगरानी की जिम्मेवारी दी गई है। विकास उत्सव में किसानों को जैविक खेती, कृषि अभियंत्रण, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, पशुपालन सहित कृषि के विभिन्न आयाम की विस्तार पूर्वक जानकारी मिलेगी। किसानों की खेती संबंधी समस्याओं के निदान के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम बनाई गई है। टीम में बीएयू के वैज्ञानिक डॉ. एस. एन. राय, डॉ. मिथिलेश कुमार, डॉ. वीरेन्द्र कुमार, ईं. पंकज, डॉ. ममता कुमारी, डॉ. विनोद कुमार, डॉ. विनय कुमार को शामिल किया गया है। कनीय पौधा संरक्षण पदाधिकारी सतीश चंद्र झा ने बताया कि पौधा संरक्षण विभाग के कुल 17 कर्मचारियों की तैनाती आयोजित विकास उत्सव को लेकर विभिन्न प्रखंडों में की गई है। विकास उत्सव की सफलता के लिए 29 नवंबर को आत्मा कार्यालय में आत्मा प्रबंध समिति की बैठक परियोजना निदेशक संजय कुमार सिंह की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी। बैठक में सहायक निदेशक गन्ना रमेश प्रसाद राउत, सचिव उप परियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह, डीएचओ ध्रुव कुमार झा, प्राचार्य डॉ. अर्जुन प्रसाद सिंह, कार्यक्रम समन्वयक केवीके डॉ. विनोद कुमार, जिला पशुपालन पदाधिकारी डॉ. योगेन्द्र प्रसाद सहित प्रबंध समिति के अन्य सदस्यों ने भाग लेते हुए विकास उत्सव में हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया।