शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

मक्के के नए मर्ज ने लिया जन्म

मक्के में दाना नहीं लगने की शिकायत के बाद मुनाफेदार मक्के की खेती करने वाले किसानों की मुश्किलें एक नई बीमारी ने बढ़ा दी है। दरअसल मक्के को पहली बार जीवाणु जनित रोग का ग्रहण लगा है। जीवाणु जनित बीमारी मक्के में पहले नहीं होती थी। लेकिन हाल ही में इस रोग के फैलने के कारण मक्के के पौधे में भी गलन की शिकायत मिलने लगी है।

दरअसल इस बीमारी के कारण जड़ से ऊपर का हिस्सा भी गलने लगता है। तना यानी कल्ला भी सड़ जाता है। सड़ा कल्ला सड़ी मछली जैसी बदबू करता है। भागलपुर जिले में इस बीमारी ने पहली बार अपना पंजा फैलाया है। कृषि विभाग के वैज्ञानिक भी इस रोग से चिंतित हो उठे हैं। रोग के निदान का प्रयास किया जा रहा है। पौधा संरक्षण विभाग को हाल ही में मक्के में लगने वाली इस बीमारी का पता चला है। खरीफ सीजन में नवगछिया अनुमंडल के भवानीपुर गांव के दिनेश यादव व झंगली रजक के मक्के के खेत में इस बीमारी को पाया गया। पहले तो किसानों ने अपने स्तर से खाद विक्रेताओं से कीटनाशक लेकर रोग को खत्म करने का प्रयास किया। जब मक्के का मर्ज बढ़ता ही गया तो किसानों ने इसकी सूचना कनीय पौधा संरक्षण विभाग को दी। नवगछिया के पौधा संरक्षण पर्यवेक्षक राजकुमार ने खेत का निरीक्षण कर इस बीमारी की जांच की। उन्होंने किसानों को ब्लीचिंग पाउडर के छिड़काव की सलाह दी। लेकिन इससे भी रोग नहीं खत्म हुआ। आलम यह है कि खेत में लगे करीब 60 फीसदी मक्का पूरी तरह बीमारी की भेंट चढ़ गया। कनीय पौधा संरक्षण विभाग के वैज्ञानिक सतीश चंद्र झा ने बताया कि मक्के में पहले फुफूंदनाशी या फिर कीट से बीमारी होती थी। लेकिन इस बार जीवाणु जनित बीमारी हुई है। मक्के की बीमारी रबी सीजन में न हो इसके लिए किसानों को पौधा संरक्षण विभाग द्वारा सलाह दी गई है वे मक्के की बुआई में निर्धारित दूरी का पालन करें। इसके अलावा सूर्य की रोशनी व हवा के लिए मक्के के खेत में पर्याप्त व्यवस्था करें। बुआई के पूर्व मक्के के बीज को उपचारित करें। मिट्टी की जांच कराना भी आवश्यक है। श्री झा ने बताया कि मक्के की नई बीमारी को देखते हुए इससे निबटने के लिए इस बार नजर रखी जाएगी। बीमारी की वजह मक्के की बुआई में दूरी का पालन नहीं करना भी है। अगर इस बार भी मक्के में ऐसी बीमारी पाई गई तो बीएयू के वैज्ञानिकों की मदद लेकर किसानों को नुकसान से बचाया जाएगा। विभाग का कहना है कि अगर मक्के में ऐसी बीमारी लगे तो तत्काल छोटे पौधों को खेत में ही दफन कर देना चाहिए। यह बीमारी एक पौधे से दूसरे पौधे में पकड़ती है।

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