गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

जहर पी बचा रहे है जिंदगी

जल ही जीवन है, यह बात जग जाहिर है। इसी मान्यता और जरूरत की वजह से जो भी जल मिलता है उसे पीना ही पड़ता है। वह भी बिना सोचे कि यह जल जहर है या अमृत। जब कि हर जगह जल को अमृत ही बताया गया है। फिर भी गंगा पार नवगछिया के लोग अमृत रूपी जहरीले जल को ही वर्षो से पीकर अपनी जिंदगी बचा रहे हैं। नवगछिया का इलाका चाहे वह कचहरी परिसर हो या जेल परिसर, या फिर नवगछिया शहर सब के सब पी रहे है जहर। यहां के जल में आयरन, फ्लोराइड एवं आर्सेनिक जैसे पदार्थ प्रचुर मात्रा में मौजूद है। जिसकी वजह से इस क्षेत्र के अधिकांश लोग गैसट्रिक, मस्तिष्क ज्वर, मानसिक थकान, दांत में कालापन, अल्प शरीरिक विकास, बौनापन, दुर्बलता के साथ-साथ चर्मरोगों से भी ग्रसित है। इसके अलावा ब‌र्त्तनों के साथ साथ कपड़े पीला होना, खाना पकाने में देर लगना, पानी से कभी-कभी दुर्गन्ध आना, ट्यूबेल पाईप का जल्द क्षतिग्रस्त होना जैसी समस्याएं तो इस क्षेत्र में आम हो चुकी है। इन सभी समस्याओं की जानकारी स्थानीय पदाधिकारियों को भी बखूबी है। तभी तो नवगछिया के अधिकांश पदाधिकारी अपने फिल्टर का पानी हमेशा साथ रखते है। खुद तो वही जल पीते है पर औरों को जहर घुला जल ही पिलवाते है। कचहरी परिसर, जेल परिसर तथा शहर में लोक स्वास्थ्य विभाग द्वारा वर्षों से बोरिंग से की जा रही जलापूर्ति में भी यही जहर घुला है। जिसका आम लोगों को उपयोग करना मजबूरी है। साधन संपन्न चुनिंदा लोगों ने तो एक्वागार्ड और फिल्टर लगा लिया है जो आम लोगों के बस की बात कहां। ये तो सरकार के भरोसे होने वाली व्यवस्था का इंतजार कर रहे है।

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