शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

क्यों नहीं आईसीयू को बंद कर दिया जाए ?

भागलपुर । क्यों नहीं गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) को बंद कर दिया जाए? अब यह चर्चा चिकित्सकों के बीच होने लगी है। जब सरकार आईसीयू में चिकित्सकों एवं कर्मचारियों के पद को स्वीकृत नहीं कर सकती है तो इस यूनिट को चलाने का क्या उद्देश्य रह गया है। विशेषज्ञ के अलावा चिकित्सकों की कमी का असर मरीजों के इलाज पर पड़ रहा है। अगर कोई मरीज की मृत्यु हो जाती है तो सारा खामियाजा चिकित्सकों को भुगतना पड़ता है।

चार वर्ष पूर्व जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल के इनडोर विभाग में आईसीयू खुला। इसका उद्घाटन स्वास्थ्य मंत्री द्वारा किया गया था। लेकिन अब तक इस विभाग में चिकित्सकों के पद स्वीकृत नहीं किए गए। नियमत: दो मरीजों पर एक चिकित्सक को रहना चाहिए। आईसीयू में 24 बेड है। इस हिसाब से कम से कम यहां 12 चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति होनी चाहिए। इसके एवज में यहां मात्र चार चिकित्सक हैं। हद तो यह है कि निश्चेतना विभाग के विभागाध्यक्ष को आईसीयू का भार सौंपा गया है। वहीं वरीय रेजिडेंट भी 50 वर्ष उम्र से कम के नहीं हैं। तीन पालियों में किसी तरह चिकित्सक मरीजों का इलाज करते हैं। उपर से न्यूरोसर्जन, यूरोसर्जन सहित विशेषज्ञों का अभाव है।

आईसीयू में उन्हीं मरीजों का इलाज करना है जो हृदय रोग के अलावा अन्य रोगों से उनकी स्थित गंभीर हो गई हो। लेकिन वैसे मरीजों को भी भर्ती कर लिया जाता है जिसकी स्थिति गंभीर नहीं रहती। हालांकि चिकित्सक ऐसे मरीजों को भर्ती नहीं करना चाहते, लेकिन इसके लिए पैरवी की जाती है। चुनाव के वक्त पैरवी के बल पर एक मरीज को भर्ती किया गया जिसे चोट ज्यादा नहीं लगी थी। सुबह वह मोटर सायकिल चलाता हुआ खुद चला गया। ऐसे में गंभीर मरीजों को शैय्या तक नहीं मिल पाती।

आईसीयू में दो इंक्यूबेटर गत नौ माह से खराब हैं। इस उपकरण में समय से पूर्व जन्म लिए बच्चों को स्वस्थ होने के लिए रखा जाता है। इस विभाग में वयस्क से दो सौ और शिशु से एक सौ रुपए प्रतिदिन लिए जाते हैं। लेकिन सुविधा नगण्य है। पेयजल का भी अभाव है। अगर बिजली नहीं रहे तो कर्मचारी के मन पर है कि वह जेनरेटर चलाए अथवा नहीं।

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