रविवार, 27 सितंबर 2009

जहां होती है ज्योति की पूजा व विसर्जन

नवगछिया में एक ऐसा भी गांव है जहां बगैर प्रतिमा वाली मंदिर में नवरात्र पर ज्योति की पूजा की जाती है। और अंतिम दिन पूरे विधि विधान के साथ ज्योति का विसर्जन भी किया जाता है। कुछ वर्ष पूर्व नवरात्र पर जलाई गई ज्योति के बुझ जाने से कुनामाप्रताप नगर कोसी में विलीन हो गया था। जिसमें लगभग 400 वर्ष पुरानी दुर्गा मंदिर भी कोसी में समा गई थी। इसके बाद यहां के वासियों ने मंदिर का निर्माण किया और तब से यह परंपरा चली आ रही है। मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। पौराणिक मान्यता है कि पूजा के दस दिनों के अंदर अगर जल रही ज्योति बुझ जाती है तो किसी बड़े अनिष्ट का होना तय है। राजेद्र कालोनी स्थित मंदिर प्रांगण में अष्टमी पूजा पर काफी संख्या में पाठा व भैंस की बलि भी चढ़ाई जाती है। यहां पहले चंदेल राजपूत इसके बाद किन्वार फिर बिसाई, भदौरिया, चौहान एवं राठौर राजपूतों के पाठा की बलि चढ़ाई जाती है।

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