बुधवार, 29 सितंबर 2010

जिंदगी का पावर छीन रहा पावरलूम

भागलपुर के नाथनगर में एक ऐसा मोहल्ला है, जहां जिंदगी की खातिर लोग मौत को गले लगा रहे हैं। यह उनकी मजबूरी है, पापी पेट का सवाल जो ठहरा। दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें पावरलूम चलाना पड़ता है। पावरलूम चलाने के दौरान सूत का कण सांस के माध्यम से फेफड़े में फंस जाने से बुनकर बहुल्य इस क्षेत्र के अधिकांश लोग टीबी जैसी गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं। हम बात कर रहे हैं भागलपुर शहरी क्षेत्र के वार्ड नंबर सात में पड़ने वाले हसनाबाद, कसबा और गढ़कछारी मोहल्ले की, जहां लगभग प्रत्येक घर का एक व्यक्ति टीबी जैसी घातक बीमारी से ग्रसित हैं। इनमें वृद्ध से लेकर महिलाएं व बच्चे तक शामिल हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश लोग गरीब तबके के हैं, जो पावरलूम चलाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। जिंदगी की जद्दोजहद में मौत का उपहार लेने वाले ऐसे लोगों की संख्या यहां 200 के करीब है, जिन्हें देखने मात्र से ही कुपोषण व टीबी ग्रसित होने का अंदाजा लगाया जा सकता है। बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन इनकी सुध लेना आज तक मुनासिब नहीं समझा। जिले में यक्ष्मा उन्मूलन अभियान की पोल खुल कर रह गई है। इनकी पीड़ा यहीं खत्म नहीं होती। पिछले दो वर्षो में जनवितरण प्रणाली की दुकान से बीपीएल परिवार वालों को एक बार भी अनाज नहीं मिला। नतीजतन लोग कुपोषण के भी शिकार हो रहे हैं। हसनाबाद मोहल्ले के टीबी रोगी मो. जियाउर रहमान, मो शुबराती, मो. इकराम, मो. शब्बीर, मो. अंसारी, मो. शमशाद, मो. अब्दुल गफार मियांजी, मो. शाहजहां, मो. अजीम एवं बीबी सोनी ने बताया कि मजदूरी से अर्जन की गई राशि से परिवार का भरण-पोषण करना संभव नहीं होता। कड़ी मेहनत और भोजन की कमी के कारण लोग ऐसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो रहे हंै। लोगों ने बताया कि बीपीएल कार्ड के तहत दो वर्ष में मात्र एक बार ही आनाज मिला। मजदूरी से कमाए गये पैसे इतने कम होते हैं कि बाजार से अनाज खरीद कर खाना संभव नहीं होता। पीडि़तों ने बताया कि टीबी व कुपोषण के चलते मोहल्ले में दर्जनों लोग अपनी जान गवां चुके हैं, जिसकी सुध लेने आज तक कोई नहीं आया। सो, घुट-घुटकर मरना उनकी मजबूरी बनी है। नाथनगर रेफरल अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी राजेन्द्र कुमार सिंह के अनुसार, अगर रोगी इलाज के अस्पताल में आएंगे तो उनका समुचित इलाज किया जाएगा।

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